उल्लेखनीय है कि धामी सरकार की तरफ से तकरीबन 5 हजार एकड़ सरकारी जमीन को कब्जे से मुक्त कराया गया है. इस संबंध में अबतक 5 सौ से अधिक अवैध मजारों को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया है. हिमाचल और यूपी की सीमा के बीच बसे हुए पश्चिमी देहरादून को पछुवा देहरादून के नाम से भी जाना जाता है. यह पर डेमोग्राफिक चेंज की दिक्कत सरकार के सामने आ खड़ी हुई है. यूपी से आई यहां की मुस्लिम जनसंख्या की यहां की सरकारी जमीन पर अवैध रूप में बसावट बढ़ती जा रही है. वन विभाग की जमीन पर अवैध रूप में मकान खड़े कर दिए गए हैं, वोट की राजनीति के लिए यहां के लोगों के आधार कार्ड, वोटर आइडी कार्ड बांटे जा रहे हैं. ऐसे में पंचायत की भूमिकाओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
जिन लोगों की संख्या अवैध रूप से उत्तराखंड में बढ़ी है जोकि उत्तराखंड के निवासी थे ही नहीं, ये लोग यूपी, बिहार, असम, बंगाल साथ ही देश के बाहर बांग्लादेश की रोहिंग्या मुस्लिन जनसंख्या पछुवा दून के भागों में तेजी से बढ़ती चली गई है. इसका सीधा असर वहां के संसाधनों पर हुआ है.
उत्तराखंड की लचर व्यवस्था है इसकी बड़ी वजह
हिमाचल ने भू कानूनों के हिसाब स सख्त व्यवस्था अपनाई है, इसके अनुसार कोई भी बाहरी व्यक्ति वहां की जमीन नहीं खरीद सकता साथी ही कब्जा नहीं कर सकता है. मगर इसके इतर उत्तराखंड में एसी कोई व्यवस्था नहीं है, इसी वजह से बाहरी लोग बड़े पैमाने पर यहां आकर बसते चले गए. जहां मौका मिला वहीं आकर कब्जे करते चले गए इसका नुक्सान अब देखने को मिल रहा है.
इसके साथ-साथ सरकारी जमीन पर अधिग्रहण के पीछे नीतियों के साथ कई नीतियों के साथ शक्तिशाली नेता भी शामिल हैं. साथ ही पीछे से धन बल का सपोर्ट भी मिलता आया है. वोट बैंक की राजनीति ने इस अवैध अधिग्रहण को पोषित किया है.
